संस्कृति और विरासत
ब्रितानी स्मारक
भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना और विस्तार में प्रयागराज ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कह सकते हैं कि प्रयागराज का इतिहास ब्रितानी हुकूमत से पहले और बाद में भी देश के इतिहास के साथ-साथ चला है। 1857 की गदर में भी प्रयागराज ने एक अहम भूमिका निभाई थी।
यही वजह है कि ब्रितानियों ने उत्तर प्रदेश की वास्तुकला में अपनी शैली वाली कई बेहतरीन इमारतों का निर्माण किया । उस दौर में प्रयागराज औपनिवेशिक वास्तुशिल्प कला के संपर्क में आया और इस तरह इंडो-इस्लामिक शैली में परंपरागत यूरोपियन नियो-क्लासिकल और गॉथिक वास्तुकला का समावेश हुआ। इन इमारतों को आज इंडो-सरकेनिक आर्किटेक्चर का नायाब नमूना करार दिया जाता है। प्रयागराज या प्रदेश के अन्य हिस्सों में निर्मित इन इमारतों की बनावट से लेकर साज-सज्जा में पूरब और पश्चिम की वास्तुकला का समावेश स्पष्ट देखा जा सकता है। इस दौर की इमारतों में जहां एक तरफ परंपरागत गुंबद और मीनारें अनिवार्य हिस्सा होती थीं, तो आधुनिक ब्रितानी शैली भी उसमें चार चांद लगाने वाली सिद्ध हुई।
चर्च, शिक्षण संस्थानों, रिहायशी इलाकों, महलों और प्रशासनिक भवनों में ब्रितानी शिल्पकला की छाप साफतौर पर दृष्टिगोचर होती है।ब्रितानी स्थापत्य कला की छाप वाली यूनाइटेड प्रोविंस की पूर्ववर्ती राजधानी प्रयागराज की कुछ महत्वपूर्ण इमारतें हैं- इलाहाबाद यूनिवर्सिटी और इलाहाबाद हाई कोर्ट। आल सेंटस केथेड्रल संभवतः एशिया में एंग्लिकन केथेड्रल का सबसे शानदार उदहारण है। 13वीं सदी की गॉथिक शैली में बने इस चर्च का डिज़ाइन सर विलियम एमर्सन ने तैयार किया था।
प्रयागराज का मेयो मेमोरियल हॉल 1879 में आर. रॉकेल बयने ने बनवाया था। 19वीं और 20वीं सदी की औपनिवेशिक स्थापत्य कला का बेहतरीन उदाहरण पेश करती यह इमारत थॉर्नहिल और मेमोरियल लाइब्रेरी के पास है। इसके हॉल 180 फ़ीट ऊंचे हैं और इनकी आंतरिक साज-सज्जा लंदन के साउथ केंसिंग्टन म्यूजियम के प्रोफेसर गैम्बल ने की थी। यह इमारत वाइसराय मेयो की याद में बनवाई गयी जिनकी हत्या कर दी गई थी। यह हाल सार्वजनिक मीटिंग्स, रिसेप्शन और बॉल नृत्य के लिए इस्तेमाल में लाया जाता था।
पर्व एवं महोत्सव
प्रयागराज में विभिन्न पर्व एवं महोत्सव मनाएं जाते हैं जो लोगों के जीवन को हर्षोल्लास से भर देते हैं। धार्मिक पर्वों के अतिरिक्त प्रत्येक वर्ष जिला प्रशासन द्वारा कई सांस्कृतिक एवं खाद्य महोत्सव भी आयोजित किये जाते हैं।
प्रत्येक वर्ष जनवरी-फरवरी माह में महीने भर चलने वाले माघ मेले के आयोजन से पर्वों का आरम्भ होता हैं। इस अवधि के दौरान लाखों तीर्थयात्री संगम स्नान हेतु प्रयागराज के लिए प्रस्थान करते हैं। माघ मेले के लिए मेला मैदान में आस्थाई शिविरों की व्यवस्था की जाती है। गंगा जल रैली प्रयागराज की एक वार्षिक विशेषता है। पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित वाटर स्पोर्ट्स फेस्टिवल (फरवरी) में कयाकिंग, कैनोइंग इत्यादि जैसे रोमांचक साहसिक खेल शामिल हैं।
मार्च माह में रंगों का पर्व होली हर्षोल्लास से मनाया जाता है। होली पर्व मौसम के परिवर्तन को दर्शाता है तथा वसंत ऋतु के आगमन का सूचक है। भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी (अगस्त – सितम्बर) को श्रद्धा भाव से श्री कृष्णजन्माष्टमी, भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्स्व मनाया जाता है। इसके उपरान्त प्रयागराज में दधिकांदो पर्व मनाया जाता है। इस अवधि के दौरान हर शनिवार-रविवार को तीन सप्ताह तक कलाकारों द्वारा भगवान कृष्ण, सुभद्रा और बालाभद्र का रूप धर कर शोभायात्रा निकाली जाती है। प्रयागराज का दस दिवसीय दशेहरा पर्व अपनी चौकियों के लिए प्रचलित है। प्रमुख चौकियां जैसे पथरचट्टी, पजावा तथा कटरा भव्य एवं रमणीय झाकियों का प्रदर्शन करती हैं। प्रकाश का पर्व, दीपावली (अक्टूबर – नवम्बर), भगवान राम के घर वापसी और बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। माना जाता है कि दीपावली के दिन भगवान राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात अयोध्या लौटे थे। दीपावली के दिन शहर दीये और रोशनी से जगमगाता है। इस अवसर पर संगम पर हजारों दीये प्रज्जवलित किये जाते हैं जो रमणीय दृश्य प्रस्तुत करते हैं।
परंपरागत मेले और पर्व
वार्षिक माघ मेला
संगम के पवित्र तट पर हर साल जनवरी-फ़रवरी में माघ मेला लगता है। इस मेले में देश विदेश से श्रद्धालु आते हैं और उनमे से कई कल्पवास करते हैं, जिसमे वे संगम के तट पर एक लम्बी अवधि तक रहते हैं। मेले में प्रशासन द्वारा सभी जरूरत की सेवाएं उपलब्ध करायी जाती है और सुरक्षा, साफ़ सफाई और स्वस्थ्य सेवाओं का उचित प्रबंध रहता है। हर बारहवें वर्ष, माघ मेला कुंभ मेले में तब्दील हो जाता है।
कुंभ मेला
प्रयागराज का बतौर तीर्थ हिन्दुओं में एक महत्वपूर्ण स्थान है। परंपरागत तौर पर नदियों का मिलन बेहद पवित्र माना जाता है, लेकिन संगम का मिलन बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। क्योंकि यहां गंगा, यमुना और सरस्वती का अद्भुत मिलन होता है।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान विष्णु अमृत से भरा कुंभ (बर्तन) लेकर जा रहे थें कि असुरों से छीना-झपटी में अमृत की चार बूंदें गिर गई थीं। यह बूंदें प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन रुपी तीर्थस्थानों में गिरीं। तीर्थ वह स्थान होता है जहां कोई भक्त इस नश्वर संसार से मोक्ष को प्राप्त होता है। ऐसे में जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरी वहां तीन-तीन साल के अंतराल पर बारी-बारी से कुंभ मेले का आयोजन होता है। इन तीर्थों में भी संगम को तीर्थराज के नाम से जाना जाता है। संगम में हर बारह साल पर कुंभ का आयोजन होता है।
भारत में महाकुंभ धार्मिक स्तर पर बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण आयोजन है। इसमें लाखों लोग शिरकत करते हैं। महीने भर चलने वाले इस आयोजन में तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए टेंट लगा कर एक छोटी सी नगरी अलग से बसाई जाती है। यहां सुख-सुविधा की सारी चीजें जुटाई जाती हैं। यह आयोजन प्रशासन, स्थानीय प्राधिकरणों और पुलिस की मदद से आयोजित किया जाता है। इस मेले में दूर-दूर के जंगलों, पहाड़ों और कंदराओं से साधु-संत आते हैं। कुंभयोग की गणना कर स्नान का शुभ मुहूर्त निकाला जाता है। स्नान के पहले मुहूर्त में नागा साधु स्नान करते हैं। इन साधुओं के शरीर पर भभूत लिपटी रहती है, बाल लंबे होते हैं और यह मृगचर्म पहनते हैं। स्नान के लिए विभिन्न नागा साधुओं के अखाड़े बेहद भव्य तरीके से जुलूस की शक्ल में संगम तट पर पहुंचते हैं। पिछला महाकुंभ 2013 में पड़ा था तो अगला कुंभ 2025 में पड़ेगा।
महाकुम्भ मेला 2025 का आयोजन प्रयागराज में किया जा रहा है, जो 13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक चलेगा। नीचे दी गई तालिका में महाकुम्भ मेला 2025 की प्रमुख तिथियों का उल्लेख है:
क्र०सं० | पर्व का नाम | तिथि/दिवस |
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1 | पौष पूर्णिमा | 13-01-2025/सोमवार |
2 | मकर संक्रांति | 14-01-2025/मंगलवार |
3 | मौनी अमावस्या (सोमवती) | 29-01-2025/बुधवार |
4 | बसंत पंचमी | 03-02-2025/सोमवार |
5 | माघी पूर्णिमा | 12-02-2025/बुधवार |
6 | महाशिवरात्री | 26-02-2025/बुधवार |
महाकुम्भ की सम्पूर्ण इतिवृति की जानकारी हेतु वीडियो देखे और फेसबुक, ट्विटर, एवं इंस्टाग्राम में पसंद व साझा करे ।
क्र०सं० | सोशल मीडिया | लिंक |
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1 | वेबसाइट | https://kumbh.gov.in/ |
2 | मोबाइल एप | एंड्राइड, आई०ओ०एस० |