मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची पर कुंभ मेले का अभिलेख
यूनेस्को के अधीन अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा करने वाली अंतर-सरकारी समिति ने 4-9 दिसंबर 2017 के दौरान दक्षिण कोरिया के जेजु में आयोजित अपने बारहवें सत्र में मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में’कुंभमेला’ को उत्कीर्ण किया है।
‘कुंभमेला’ के अभिलेख को विशेषज्ञ निकाय द्वारा अनुशंसित किया गया था,यह निकाय सदस्य राज्यों द्वारा प्रस्तुत नामांकन की विस्तार से जांच करता है।समिति ने कहा कि ‘कुंभमेला’ पृथ्वी पर तीर्थयात्रियों का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समागम है। इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित यह उत्सव, भारत में पूजा से संबंधित अनुष्ठानों के एक समन्वित समूह का प्रतिनिधित्व करता है।यह एक सामाजिक अनुष्ठान और उल्लासमय समारोह है, जो समुदाय की अपने इतिहास और स्मृति की धारणा से जुड़ा है।यह तत्व मौजूदा अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार उपकरणों के साथ संगत है क्योंकि इसमें समाज के सभी वर्गों के लोग बिना किसी भेदभाव केसमान उत्साह से भाग लेते हैं।एक धार्मिक उत्सव के रूप में,कुंभमेला यह दर्शाता है कि समकालीन दुनिया के लिए सहिष्णुता और सम्मिलन विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं।
समिति ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि ‘कुंभमेला’ से जुड़े ज्ञान और कौशलगुरु-शिष्य परंपरा (शिक्षक-छात्र संबंध) के माध्यम से संतों और साधुओं द्वारा अपने शिष्यों को पारंपरिक अनुष्ठानों और मंत्रों से संबंधितज्ञान प्रेषितकरते हैं। इससे इस उत्सव की निरंतरता और व्यवहार्यता सुनिश्चित रहेगी।
कुंभमेला से संबंधित कथा में अमृत कलश (अमरता का रस) के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच हुआ युद्ध शामिल है।देवों और असुरों के बीच होने वाले इस संग्राम में, अमृत की कुछ बूँदें हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन और नासिक में गिर गई थीं और उसी समय से इन स्थानों पर कुंभमेला आयोजित कियाजाता है।
2003 में, यूनेस्को की महासभा ने एक अंतरराष्ट्रीय संधि के रूप में अमूर्त विरासत की सुरक्षा के समझौते को अपनाया और स्वीकार किया कि सांस्कृतिक विरासत में मात्र मूर्त स्थान, स्मारक और वस्तुएंही नहीं, बल्कि परंपराएं और जीवंत अभिव्यक्तियांभीशामिल हैं।अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का अर्थ प्रथाओं, प्रतिनिधित्वों, अभिव्यक्तियों, ज्ञान औरकौशल के साथ-साथ उनसे जुड़े उपकरणों, वस्तुओं, कलाकृतियों और सांस्कृतिक स्थानों से है, जिन्हें विभिन्न समुदाय, समूह और व्यक्ति अपनी सांस्कृतिक विरासत का एक भाग मानते हैं।यह अमूर्त सांस्कृतिक विरासत समुदायों और समूहों द्वारा अपने पर्यावरण, अपनी प्रकृति और अपने इतिहास से संपर्क की प्रतिक्रिया में लगातार निर्मित की जाती है, यह उन्हें पहचान और निरंतरता की भावना प्रदान करती है। इस प्रकार यह सांस्कृतिक विविधता और मानव रचनात्मकता के प्रति सम्मान को बढ़ावा देती है। इसका महत्व इसके अद्वितीय होने के कारण नहीं बल्कि इसलिए है कि समुदाय द्वारा इसका अनुसरण किया जाना प्रासंगिक है।इसके अलावा, इसका महत्व सांस्कृतिक अभिव्यक्ति में ही नहीं, बल्कि ज्ञान, क्रिया विधि और कौशल की समृद्धि में है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौंपी जाती है।